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घृतकुमारी या एलोवेरा, जिसे क्वारगंडल या ग्वारपाठा के फायदे।

घृतकुमारी या एलोवेरा, जिसे क्वारगंडल या ग्वारपाठा के रूप में भी जाना जाता है, सबसे आम तौर पर पाया जाने वाला छोटा मांसल पत्ती का पौधा है, जो कई बीमारियों में बेहद उपयोगी है, इसकी पत्तियों के बीच का गूदा बाहरी उपयोग में त्वचा रोगों में उपयोग किया जाता है। यह काम करता है, महिलाओं के मासिक धर्म की अनियमितताओं को खत्म करने में प्रभावी है, इसका उपयोग यकृत (जिगर), प्लीहा और पाचन रोगों और गठिया, एलोवेरा या एलोवेरा के उपचार में किया जाता है, जिसे क्वैगंडल या ग्वारपाठा भी कहा जाता है। औषधीय पौधा, यह संभवतः उत्तरी अफ्रीका में उत्पन्न हुआ है, यह प्रजाति दुनिया के अन्य स्थानों में स्वाभाविक रूप से नहीं पाई जाती है, लेकिन इसके करीबी रिश्तेदार उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं, यह सभी सभ्यताओं ने इसे एक औषधीय पौधे के रूप में मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधे पाए गए हैं पहली शताब्दी ईस्वी के बाद से दवा के रूप में उपयोग किया जाता है, यह आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता है, इसके अलावा नए नियम में इसका उल्लेख है। हालाँकि, बाइबल में स्पष्ट नहीं है कि एलो और एलो वेरा के बीच एक संबंध है। मुसब्बर वे...

गिलोय की एक बहुवर्षिय लता होती है।ईसके गुण जाने।

गिलोय के गुण बहुत ही गुणकारी हैं जाने । " गिलोय की एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर की महान औषधि माना गया है एवं जीवन्तिका नाम दिया गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है । " नीम, आम्र के वृक्ष के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं।  इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। " इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। बहुत पुरानी गिलोय में यह बाहु जैसा मोटा भी हो सकता है।  इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती  हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्‍फोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। यह वात, कफ और पित्तनाशक होती है।  गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है । साथ ही इसमें एंटीबायोटिक और एंटीवाय...

कपूर के पौधे के फायदे हमारे लिये कितना फायदेमंद है।

कपूर का पौधा हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसकी सुगंध इतनी अच्छी होती है कि इसकी सुगंध से आसपास की सभी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती हैं। कपूर का पौधा अपनी सुगंध से चारों ओर के वातावरण को खुशबूदार बना देता है। कपूर के पौधे को हम अपने घर में,बाहर, कहीं भी किसी भी जगह पर लगा सकते हैं।इसे हम अपने घर में, गमले में,कहीं भी लगा सकते हैं। कपूर का पौधा केवल एक पौधा ही नहीं है अपितु यह हमारे लिए स्वास्थ्य रूपी खजाने का भंडार है। परंतु आज हम जानेंगे कपूर के पौधे के क्या फायदे हैं?कपूर का पौधा लगाने से घर से बीमारियां दूर हो जाती हैं। अगर कोई व्यक्ति कपूर के पौधे के संपर्क में रहता है तो वह हमेशा स्वस्थ रहता है। कपूर का पौधा लगाने से मक्खी, मच्छर ,सांप, छिपकली इत्यादि घर में नहीं आते हैं। सबसे बड़ा फायदा कपूर का पौधा लगाने से जो हमें होता है वह यह है कि यह पर्यावरण को शुद्ध करने में बहुत बड़ी मदद करता है। दोस्तों इस तरह से कपूर का पौधा हमारे लिए बहुत ही लाभकारी है।यह हमें जीवन वायु प्रदान करता है।

ऐसा कौन सा पौधा है जो जहरीले सांप के जहर को भी कुछ ही देर में उतार देता हैं।

ऐसा कौन सा पौधा है जो जहरीले सांप के जहर को भी कुछ ही देर में उतार देता हैं। वैसे तो हर कोई इंसान सांप के काटने के बाद घबराने लगता है और उसकी जल्दी ही मृत्यु हो जाती है लेकिन दोस्तों क्या आप जानते भी है की कंटोला नाम का एक ऐसा पौधा है के जिसको सांप के काटे हुए स्थान पर लगाने से उसका जहर उतर जाता है या कम हो जाता है। आपको बतादें की कंटोला का पौधा दो प्रकार का होता है एक हो जिसमें फल और फूल दोनों लगते हैं और एक और जिसमें केवल फूल आते हैं। दोस्तों आपको बतादें की यदि इस फल को घिसकर आप सांप द्वारा कांटे हुए स्थान पर लगाते हैं तो इससे सांप का जहर कम होता है और यह सांप के जहर को शरीर में फैलने से रोकता है। तो यदि हम इस समय में किसी डॉक्टर या वैद्य के पास नही है तो हमारी जान बच सकती है। अतः हमे सांप के काटने के बाद घबराना नही चाहिए और इलाज के बार मे सोचना चाहिए ताकि हमारी जान बच सके।

कायाकल्प आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को लेकर यह भ्रम है कि इससे आकस्मिक चिकित्सा लाभ नहीं लिया जा सकता और इसका असर लंबे समय तक औषधि लेने पर ही होता है। आयुर्वेदिक की पुस्तक 'पंचकर्म से रोग मुक्ति' में उक्त भ्रमों का इलाज भी किया गया है और सामान्य भाषा में रोगों का इलाज कैसे पंचकर्म से किया जाता है, इस बारे में लिखा गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी पंचकर्म चिकित्सा विधा को स्वीकार किया गया है, यह काफी कम लोगों को पता होगा। आयुर्वेद के प्रमुख दो उद्देश्य हैं- स्वास्थ्य की रक्षा और रोगी का उपचार। इन दोनों ही उद्देश्यों को पंचकर्म के माध्यम से कैसे पूर्ण किया जाए, इसका वर्णन काफी अच्छा बन पड़ा है। पंचकर्म की पाँच प्रमुख विधियाँ वमन कर्म, विरेचन कर्म, वस्ति कर्म, नस्य कर्म, रक्तमोक्षण कर्म के माध्यम से शरीर के विकारों को कैसे दूर किया जाता है, इसका सचित्र वर्णन पुस्तक में है। दक्षिण भारत में पंचकर्म की लोकप्रियता काफी ज्यादा है और वर्तमान में उत्तर भारत में भी केंद्र सरकार की आयुष योजना के माध्यम से पंचकर्म को लोकप्रिय बनाने की कवायद जारी है। प्रत्येक व्यक्ति को जवाँ बनने की चाहत रहती ...