आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को लेकर यह भ्रम है कि इससे आकस्मिक चिकित्सा लाभ नहीं लिया जा सकता और इसका असर लंबे समय तक औषधि लेने पर ही होता है। आयुर्वेदिक की पुस्तक 'पंचकर्म से रोग मुक्ति' में उक्त भ्रमों का इलाज भी किया गया है और सामान्य भाषा में रोगों का इलाज कैसे पंचकर्म से किया जाता है, इस बारे में लिखा गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी पंचकर्म चिकित्सा विधा को स्वीकार किया गया है, यह काफी कम लोगों को पता होगा। आयुर्वेद के प्रमुख दो उद्देश्य हैं- स्वास्थ्य की रक्षा और रोगी का उपचार। इन दोनों ही उद्देश्यों को पंचकर्म के माध्यम से कैसे पूर्ण किया जाए, इसका वर्णन काफी अच्छा बन पड़ा है।
पंचकर्म की पाँच प्रमुख विधियाँ वमन कर्म, विरेचन कर्म, वस्ति कर्म, नस्य कर्म, रक्तमोक्षण कर्म के माध्यम से शरीर के विकारों को कैसे दूर किया जाता है, इसका सचित्र वर्णन पुस्तक में है। दक्षिण भारत में पंचकर्म की लोकप्रियता काफी ज्यादा है और वर्तमान में उत्तर भारत में भी केंद्र सरकार की आयुष योजना के माध्यम से पंचकर्म को लोकप्रिय बनाने की कवायद जारी है।
प्रत्येक व्यक्ति को जवाँ बनने की चाहत रहती है और इस हेतु वह बुढ़ापे की निशानियाँ शरीर पर दिखने के बाद ही तरह-तरह के इलाज करने लगता है। की विधि समय जरूर लेती है, पर इससे स्वस्थ शरीर होने की बात कही गई है। असल में इन पाँचों विधियों में प्रकृति से ली गई सीख और औषधियों का ही प्रयोग किया गया है। 40 वर्ष की उम्र के बाद कायाकल्प करने के लिए पंचकर्म की पाँचों विधियाँ शरीर पर की जाती हैं तथा 130 दिनों में शरीर का कायाकल्प होने की बात लिखी गई है।
पंचकर्म से मौसमी बीमारियों को कैसे ठीक करें और आकस्मिक स्थिति में मरीज को पंचकर्म में उल्लेखित औषधि किस प्रकार देना चाहिए, इस बारे में पुस्तक में काफी विस्तार से बताया गया है। जैसे विषपान, मिर्गी, लू लगने, चोट लगने पर। और तो और, हृदयाघात आदि में पंचकर्म विधियाँ कारगर साबित हो सकती हैं। सौंदर्य हेतु पंचकर्म से लेकर आयुर्वेद संबंधी सामान्य प्रश्न और पंचकर्म से लाभ प्राप्त कर चुके मरीजों के अनुभव को भी पुस्तक में जगह दी गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी पंचकर्म चिकित्सा विधा को स्वीकार किया गया है, यह काफी कम लोगों को पता होगा। आयुर्वेद के प्रमुख दो उद्देश्य हैं- स्वास्थ्य की रक्षा और रोगी का उपचार। इन दोनों ही उद्देश्यों को पंचकर्म के माध्यम से कैसे पूर्ण किया जाए, इसका वर्णन काफी अच्छा बन पड़ा है।
पंचकर्म की पाँच प्रमुख विधियाँ वमन कर्म, विरेचन कर्म, वस्ति कर्म, नस्य कर्म, रक्तमोक्षण कर्म के माध्यम से शरीर के विकारों को कैसे दूर किया जाता है, इसका सचित्र वर्णन पुस्तक में है। दक्षिण भारत में पंचकर्म की लोकप्रियता काफी ज्यादा है और वर्तमान में उत्तर भारत में भी केंद्र सरकार की आयुष योजना के माध्यम से पंचकर्म को लोकप्रिय बनाने की कवायद जारी है।
प्रत्येक व्यक्ति को जवाँ बनने की चाहत रहती है और इस हेतु वह बुढ़ापे की निशानियाँ शरीर पर दिखने के बाद ही तरह-तरह के इलाज करने लगता है। की विधि समय जरूर लेती है, पर इससे स्वस्थ शरीर होने की बात कही गई है। असल में इन पाँचों विधियों में प्रकृति से ली गई सीख और औषधियों का ही प्रयोग किया गया है। 40 वर्ष की उम्र के बाद कायाकल्प करने के लिए पंचकर्म की पाँचों विधियाँ शरीर पर की जाती हैं तथा 130 दिनों में शरीर का कायाकल्प होने की बात लिखी गई है।
पंचकर्म से मौसमी बीमारियों को कैसे ठीक करें और आकस्मिक स्थिति में मरीज को पंचकर्म में उल्लेखित औषधि किस प्रकार देना चाहिए, इस बारे में पुस्तक में काफी विस्तार से बताया गया है। जैसे विषपान, मिर्गी, लू लगने, चोट लगने पर। और तो और, हृदयाघात आदि में पंचकर्म विधियाँ कारगर साबित हो सकती हैं। सौंदर्य हेतु पंचकर्म से लेकर आयुर्वेद संबंधी सामान्य प्रश्न और पंचकर्म से लाभ प्राप्त कर चुके मरीजों के अनुभव को भी पुस्तक में जगह दी गई है।
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