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आदमी की कौन सी आदत से कंगाल हो जाता हैं।


नमस्कार…

आदते तो अनेक है जैसे नशा करना, बेईमानी करना, चुगली करना, निंदा करना, आलस्य, ये आदते ही काफी है कंगाली के लिए | क्योंकि व्यक्ति काफी आदते एसी बना लेता है जो उसके लिए ही नासूर बन जाती है |


कहतें है आदते अपनी निजी निर्णय से बनती है | और आदते बदली भी जा सकती है | जैसे कि हममे आदत है अच्छे सोच का, प्रेम, सद्भावना , शांत मनोवृति, शुद्ध संकल्प ये आदते हमारे अवगुणों को दूर करती है | अवगुण और गुण इन्ही का सारा खेल हैं | गुण में जन्हा हमारा प्रकाश पुरे शब्बा पर होता, वोही अवगुण में कोई हमे पूछता तक नहीं | कारण हमारे अवगुण एक न एक दिन हमारे लिए ही परेशानी का सबब बन जाता है |

सद्गुण है तो हमारे अंदर सद्विवेक है | और हम अंदर से सद्विवेक से सदाचार को उत्पन कर सकते है, सदाचार हमे आचारण सिखाता है | हम सीखते है और उत्पन करते रहते है | उत्पन करना मन का कार्य है | और सभी गुण अवगुण मन, बुद्धि के बीच का सेतु है | ये सेतु इस तरह कार्य करता है जैसे हम इसमें बंधे हुए है | और मन बुद्धि के बंधन से जो वेव्स हमसे निकलती वो हमारा ओरो बन जाता है |

उसी ओरो से लोग हमारे पास आते है, या दूर जाते है निर्भर करता है | लोग हमेशा भी अपनी अपनी वृति के आधार से सोचते बोलते है | सबकी अपनी वृति होती है | और सब उसी अनुसार चलते है | कोई कि सोच सही होती है | तो उस सोच से वो सहज वृति बना लेता है, जो उसके ओरो में सहज भाव पैदा करता है |

इसीलिए कहते है सब अवगुण और गुण का ही खेल चला हुआ है | कभी तो गुण चमकते है | तो कभी अवगुण का अन्द्कार भी हम पर आ जाता है | हम कभी अपनी चमक गुस्से से उतार देते, तो कभी अपनी चमक निंदा से उतार देते, तो कभी अपनी चमक घृणा भाव से उतार देते, ये सब अवगुण हममे ही होते है | और गुण जिसमे हम दुसरे से प्रेम से बात करते, दुसरो को मोटीवेट करते |
दुसरे पर रॉब क्रोध, घृणा नहीं लेकिन क्षमा भाव रखते है | जब दुसरे पर हम ये सब करते चलते है | तब हमारा व्यक्तिव आदर्श बन जाता है | जो आदर्श हमारे गुणों के प्रकाश को बड़ा देता है | हम चलते फिरते गुण दानं करने वाले बनते है | जैसे एक फूल सबको खुसबू ही देता है, वैसे गुण सबको उसकी महक देंगे | जो महक सबको जरुर चमकाएगी | और हमारे को वो महक जरुर पंसद आती है क्योंकि हम उस गुण के रचियता बन जाते है |

रचियता हम अभी भी है लेकिन हम अवगुणों कि रचना करते है | अभी भी हम गुण बना सकते है, तो जब अवगुण रचना हो सकती है तो क्या गुण नहीं बना सकते? रचना हर चीज़ कि एक तरह से होती है | बस हमारे पास उस चीज़ का ज्ञान हो, तो हम उस ज्ञान से वो सब बना सकते जो हम बनाने वाले हैं |

तरह तरह से सबकी जीवन यात्रा होती है | हर एक के पास अपनी शैली है, पर हम सम्स्जस्य बिठा अपने जीवन को गुणों कि महक से चमका सकते है | हाँ हम कर सकते है, क्योंकि हम ही अपने जीवन को बनाने वाले निर्माता है | अब हम यंहा गुण धारण करे या अवगुण, सब हम पर निर्भर करता है | अवश्य ही हम गुण को ही अधिक प्राथमिकता देते होंगे |

धन्यवाद | आपका जीवन सदा गुणवान रहें यही हमारी शुभ कामना है |


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