वह ब्रह्म पूण हें,यह जगत भी पूण हें;पूण ब्रम्हा से ही यह पूण जगत उदित होता हे;पूण से ही पुनता लेकर जब यह जगत बन चुकता हे,तब भी वह ब्रम्हा पूण-का-पूण बचा रहता हें/वह परमात्मा कपन तक नहीं करता परन्तु मन से भी अदिक वेगवान हे;इंद्रिया उसे प्राप्त नहीं कर सकती परन्तु वह इन्द्रियों से भी वर्तमान हे;वह ठहरा हुवा ही अन दोड़ते हुवो को पीछे छोड़ देता हे;उसी के कारण वायु,जो हलकी हे,अपने से भारी जल को उठा लेती हें,इसलिए वह पूण हे ?
भोजन का एकमात्र उद्देश्य भुख मिटाना ही नहीं है उसका मुख्य उद्देशआरोग एवं स्वास्थ्य ही हैं जिस भोजन में भूख को तो मिटा दिया किंतु स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला वह भोजन उपयुक्त भोजन नहीं माना जाएगा उपयुक्त भोजन वही है जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि हो विटामिनों की दृष्टि हरे शाक तथा फल आदी ही स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है इसके अतिरिक्त नमक आवश्यक तत्व भी फलो तथा शाको मे पाया जाता है अनाज के छिलकों में भी यह तत्व वर्तमान रहता है किंतु अझानवश मनुष्य अनाजों को पीसकर यह तत्व नष्ट कर देते हैं कहना न होगा कि प्रकृति किस रूप में फलों और अनाजों को पैदा और पकाया करती है उसी रूप में ही वे मनुष्य के वास्तविक आहार है।
टिप्पणियाँ