मनुष्य मात्र को परमात्मा प्राप्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है| मनुष्य जिस वर्ण,आश्राम, धर्म,साप्रदाय, वेशभूषा देश, आदि में है,वही रहते हुए वह अपना कल्याण कर सकता है, मनुष्य प्रत्येक परिस्थितियों में परमात्मा को प्राप्त कर सकता है, इसके लिए उसे परिस्थिति बदलने की जरूरत नहीं है, सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति तो कर्म करने से होती है, पर परमात्मा की प्राप्ति कुछ भी ना करने से होती है ,परमात्मा की प्राप्ति जड़ता {शरीर, इंद्रियां, मन, बुद्धि} के द्वारा नहीं होती, प्रत्युत जड़ता के त्याग से होती है|
भोजन का एकमात्र उद्देश्य भुख मिटाना ही नहीं है उसका मुख्य उद्देशआरोग एवं स्वास्थ्य ही हैं जिस भोजन में भूख को तो मिटा दिया किंतु स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला वह भोजन उपयुक्त भोजन नहीं माना जाएगा उपयुक्त भोजन वही है जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि हो विटामिनों की दृष्टि हरे शाक तथा फल आदी ही स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है इसके अतिरिक्त नमक आवश्यक तत्व भी फलो तथा शाको मे पाया जाता है अनाज के छिलकों में भी यह तत्व वर्तमान रहता है किंतु अझानवश मनुष्य अनाजों को पीसकर यह तत्व नष्ट कर देते हैं कहना न होगा कि प्रकृति किस रूप में फलों और अनाजों को पैदा और पकाया करती है उसी रूप में ही वे मनुष्य के वास्तविक आहार है।
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