अब मैं वेदमाता, ब्रह्मसुता, सब्दमुला,वाणी, देवी , महामाया श्रीसरस्वती जी की वंदना करता जो मुख से शब्द निकल जाते है |अपार वाणी कहलाती है,और जो निषाद के मन का भाव सहित करती है, जो योगियो की समाधि,स्थित सुविद्या होने के कारण अविद्या को नष्ट करती है| जो महापुरुषों की व्यवस्था चतुर्थ वस्था में पर निकट रहने वाली माया और जिनके लिए साधु लोग बड़े-बड़े कार्यों में प्रवृत्त होते हैं जो महान लोगों की शांति ईश्वर की भक्ति गानों की विरक्ति और निरासो भी शोभा है जो अनंत ब्राह्मणों की रचना करती हे और विनोद में ही करती है और जो आधी पुरुषों की आड़ में खड़ी रहती है जो केवल देखने से ही दिखाई पड़ती है और विचार करने से अदरक हो जाती है और ब्रह्मा आदि भी जिसका पार नहीं पाते जो जगत के सभी नाटकों को भी तरीका है जो निर्मल स्तुति है और जिनके आनंद नंद तथा ज्ञान प्राप्त होती है मां सरस्वती को बार बार प्रणाम हे |
भोजन का एकमात्र उद्देश्य भुख मिटाना ही नहीं है उसका मुख्य उद्देशआरोग एवं स्वास्थ्य ही हैं जिस भोजन में भूख को तो मिटा दिया किंतु स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला वह भोजन उपयुक्त भोजन नहीं माना जाएगा उपयुक्त भोजन वही है जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि हो विटामिनों की दृष्टि हरे शाक तथा फल आदी ही स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है इसके अतिरिक्त नमक आवश्यक तत्व भी फलो तथा शाको मे पाया जाता है अनाज के छिलकों में भी यह तत्व वर्तमान रहता है किंतु अझानवश मनुष्य अनाजों को पीसकर यह तत्व नष्ट कर देते हैं कहना न होगा कि प्रकृति किस रूप में फलों और अनाजों को पैदा और पकाया करती है उसी रूप में ही वे मनुष्य के वास्तविक आहार है।
टिप्पणियाँ