शरीर आत्मा का वाहन मात्र है इससे निरोग और प्रसन्न रखने के लिए जितनी अनिवार आवश्यकताये है उतने में ही संतुष्ट हो जाए भौतिक संप्रदाय बढ़ाने की अपेक्षा आत्मिक सद्गुणों की संप्रदाय बढ़ाना उचित बुद्धिमत्ता पूर्व है प्रलोभनों में मन को बहुत आकर्षण रहा तो सारा मनोबल शरीर बल और समय उसी दिशा में लगा रहेगा और आत्मिक प्रगति के तीनों ही साधन बहुत कम मात्रा में बचेंगे फलस्वरुप सफलता भी थोड़ी सी ही मिलेगी
शारीरिक रक्षा और पारिवारिक व्यवस्था के लिए उचित मनोयोग लगाना व्यवस्थित करना इन करतूतों को अपेक्षा करने के लिए कोई नहीं कहता अलौकिक कर्तव्यों का उचित सीमा में पालन करना साधना का ही एक भाग है शरीर और परिवार भी हमारे उनके संबंधी उनकी अपेक्षा क्योंकि जाए ऐसी उपेक्षा से जीवन स्वभाविक और समान क्रम अस्वस्थ होते हैं शील मानव के लिए उचित नहीं कहा जा सकता हमें अपने शारीरिक मानसिक पारिवारिक समाजिक सभी कर्तव्यों को उचित रीति से पूर्ण करने चाहिए पर इसमें इतना अधिक लोभ और मोह ना हो आत्मिक कर्तव्यों कीओर उपेक्षा की जाने लगे और अनिछा उत्पन्न हो जाए।
सूर्योदय से पहले उठो। 2. सुबह जल्दी उठकर कसरत करें। 3. नाश्ता न छोड़ें। 4. 10 मिनट योगा या मेडिटेशन सेशन करें। 5. सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करना बंद करो। 6. बेहतर व्यक्तित्व के साथ समय बिताना शुरू करें। 7. यूट्यूब की बजाय टेड वार्ता देखें। 8. परिवार के लिए समय निकालें। 9. हर हफ्ते कम से कम एक बार लंबी सैर करें। 10.बिस्तर पर जाने से पहले कुछ पढ़ें। और एक बोनस, उस व्यक्ति के उत्तर को धन्यवाद देना कभी न भूलें जिसने आपकी मदद की
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