शरीर आत्मा का वाहन मात्र है इससे निरोग और प्रसन्न रखने के लिए जितनी अनिवार आवश्यकताये है उतने में ही संतुष्ट हो जाए भौतिक संप्रदाय बढ़ाने की अपेक्षा आत्मिक सद्गुणों की संप्रदाय बढ़ाना उचित बुद्धिमत्ता पूर्व है प्रलोभनों में मन को बहुत आकर्षण रहा तो सारा मनोबल शरीर बल और समय उसी दिशा में लगा रहेगा और आत्मिक प्रगति के तीनों ही साधन बहुत कम मात्रा में बचेंगे फलस्वरुप सफलता भी थोड़ी सी ही मिलेगी
शारीरिक रक्षा और पारिवारिक व्यवस्था के लिए उचित मनोयोग लगाना व्यवस्थित करना इन करतूतों को अपेक्षा करने के लिए कोई नहीं कहता अलौकिक कर्तव्यों का उचित सीमा में पालन करना साधना का ही एक भाग है शरीर और परिवार भी हमारे उनके संबंधी उनकी अपेक्षा क्योंकि जाए ऐसी उपेक्षा से जीवन स्वभाविक और समान क्रम अस्वस्थ होते हैं शील मानव के लिए उचित नहीं कहा जा सकता हमें अपने शारीरिक मानसिक पारिवारिक समाजिक सभी कर्तव्यों को उचित रीति से पूर्ण करने चाहिए पर इसमें इतना अधिक लोभ और मोह ना हो आत्मिक कर्तव्यों कीओर उपेक्षा की जाने लगे और अनिछा उत्पन्न हो जाए।
भोजन का एकमात्र उद्देश्य भुख मिटाना ही नहीं है उसका मुख्य उद्देशआरोग एवं स्वास्थ्य ही हैं जिस भोजन में भूख को तो मिटा दिया किंतु स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला वह भोजन उपयुक्त भोजन नहीं माना जाएगा उपयुक्त भोजन वही है जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि हो विटामिनों की दृष्टि हरे शाक तथा फल आदी ही स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है इसके अतिरिक्त नमक आवश्यक तत्व भी फलो तथा शाको मे पाया जाता है अनाज के छिलकों में भी यह तत्व वर्तमान रहता है किंतु अझानवश मनुष्य अनाजों को पीसकर यह तत्व नष्ट कर देते हैं कहना न होगा कि प्रकृति किस रूप में फलों और अनाजों को पैदा और पकाया करती है उसी रूप में ही वे मनुष्य के वास्तविक आहार है।
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