मान लीजिए कि दिमाग एक घोड़ा है। घोड़े का चलना एवं भागना एक समस्या नहीं है। घोड़े का अंधाधुन भागना एक समस्या है, जिस वजह से घुड़सवार घोड़े से गिरकर चोट खा सकता है। जब तक गिरेगा नहीं, तब तक खुद को घोड़े से गिरने से बचाने के लिए परेशान रहेगा।
शांति शब्द आते ही हमारे दिमाग़ में तस्वीर बनती है -
- आँखें बंद कर बैठकर ध्यान लगाने की, जिसे मैडिटेशन भी कहते हैं।
- अक्सर शांति पाने का उपाय भी यही बताया जाता है।
- लेकिन होता ये है कि इस तरह मैडिटेशन करते वक़्त भी दिमाग में विचारों की उथल-पुथल लगी रहती है।
- पंद्रह मिनट मौन बैठना भी एक काम के जैसा हो जाता है।
- फिर भी अगर अपनी साँसों के चलने पर ध्यान केंद्रित कर किसी तरह विचारों को कुछ देर रोक भी लिया, तो पंद्रह मिनट के मैडिटेशन के बाद दिन की शुरुआत हो जाती है। और फिर से वही आपा-धापी। ट्रैफिक, भीड़, स्कूल-कॉलेज के इम्तिहान, बेरोज़गारी, नौकरीपेशा लोगों का दफ़्तर, काम का दबाव, किश्तें, खुद का बिज़नेस, घर के झगड़े, प्यार-मुहब्बत में लड़ाई, सफलता रुपया प्रसिद्धि आदि पाने की चाह, ईर्ष्या, अशांति। लीजिए, सारा गुड़ गोबर हो गया।
- ये तो बस ऐसा हुआ कि सुबह के वक़्त घोड़ा नदी किनारे बैठकर पंद्रह मिनट के लिए सुस्ता लिया। और फिर लगा पूरे दिन बदहवासी में अंधाधुन भागने।
समस्या यह है कि सफलता की बात हो, वजन कम करना हो या शांति पानी हो, आप कोई शॉर्टकट चाहते हैं।
- यक़ीन मानिए कि समाधान तो आपको हर बात का पता है। लेकिन वह समाधान आपको मुश्किल लगता है। इसलिए आप सोचते हैं कि कोई मुझे जादुई नुस्खा बता दे।
- अगर कोई आपको ईमानदारी से कहे कि वजन कम करने के लिए
- समय से सोना और उठना शुरू करो,
- हर रोज़ सुबह कसरत करो,
- शराब कम अथवा बंद करो,
- बाहर का खाना बंद करो,
- पानी पियो, फल और सब्ज़ी खाओ,
- सुबह का नाश्ता अच्छे से करो,
- रात को डिनर कम खाओ और सोने से दो घंटे पहले खाओ,
तो आप कहेंगे कि यह सब तो मैं पहले से ही जानता हूँ।
- मैं तो कुछ ऐसा जानना चाहता था, जो मुझे ना पता हो। यही सब बताने के लिए मैं आपको रुपए क्यों दूँ? मुझे तो कोई जादुई नुस्खा चाहिए, जिससे मैं फटाफट पतला हो जाऊँ और मुझे केक-पेस्ट्री, कोल्ड-ड्रिंक, पिज़्ज़ा खाना भी बंद ना करना पड़े। मैं तो ऐसी भेड़ हूँ, जो बचपन से हरेक काम किसी के निर्देश देने पर करता आया है। खुद से कुछ कैसे करूँ?
आसान शॉर्टकट, आपकी अधीरता और भेड़ की तरह किसी के हाँकने पर चलने की आदत के चक्कर में खड़ा हो जाता है करोड़ों-अरबों का व्यापार।
- हमारे पास आइए। पाँच दिन में वजन घटाइए। हर कोई कहता है कि उनके पास कोई रहस्य है।
- कोई आपको अफ्रीका का कोई दुर्लभ फल बेचता है, तो कोई हरी कॉफ़ी बेचता है।
- कोई आपको पेट पर लगाने वाली बेल्ट चिपका देता है।
- कोई प्रोटीन पाउडर, कोई फिटनेस सेंटर की मैम्बरशिप, तो कोई डाइट चार्ट बेचता है। वह भी “चीट-डे” यानि पेस्ट्री खाने वाले दिन के साथ।
शांति की खोज भी इससे कुछ ज़्यादा अलग नहीं है।
- कोई बाबा कहता है कि बस हरी चटनी के साथ समोसा खाओ, शांति मिल जाएगी। लोग ऐसी वाहियात बात पर भी यक़ीन कर लेते हैं। कहते हैं कि अरे वाह, बाबा ने तो बहुत अच्छा तरीका बता दिया। पर समोसा खाने तक ख़ुशी रहती है। उसके बाद वही अशांति।
- जाने कितनी किताबों की लाखों-करोड़ों प्रतियाँ बिक गई। जी हाँ, इस किताब में छुपा है शांति पाने का रहस्य। मन की ऊर्जा संचारित करो, ऊर्जा क्षेत्र, चेतन-अवचेतन, अपने अंदर झाँको, किस तरह झाँको, कर्म जिसे अब कर्मा कहा जाने लगा है, माया-योगमाया, ऐसी बहुत सी रहस्यमयी बातों को आप विस्मय से पढ़ते रहते हैं। फिर अंत में क्वोरा पर सवाल पूछते हैं कि शांति कैसे मिलेगी।
- कोई कहता है कि हमारे शिविर में चले आओ। पाँच दिन में शांति पाओ।
- वहाँ आपको जबरदस्ती सुबह उठाया जाता है। मुफ्त की चीज़ की कद्र नहीं होती। पर आपने रुपए दिए हैं, और वहाँ आप उनकी जगह पर हैं, इसलिए आप सुबह उठ जाते हैं।
- प्राकृतिक सौंदर्य से महकते हुए आश्रम में आपको सुबह-शाम मैडिटेशन करवाया जाता है।
- खुली हवा में आपकी कसरत करवाई जाती है।
- आपके साथ सामान्यतयः वहाँ कोई दोस्त अथवा परिजन भी नहीं होता। आप एकांत में हैं। आपके फ़ोन को भी आपसे दूर रखा जाता है, ताकि बाहर के जीवन की कोई भी चिंता आप तक ना पहुँचें।
- आपको सात्विक खाना खिलाया जाता है। आपको उन आश्रम वालों के खुले-खुले कपड़े पहनाए जाते हैं।
- कुछ जगह आपसे नाचने को भी कहा जाता है, और आप मस्ती में नाचते हैं।
- आप कहते हैं कि ये तो अद्भुत है। मैं कितने सालों बाद इतना शांत महसूस कर रहा हूँ। लेकिन आप वापस आते हैं, और फिर से वही चिंताएँ और अशांति का जंजाल।
- पाँच दिन में शांति पाओ, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि केवल पाँच दिन के लिए शांति पाओ।
- आपको आश्रम की याद आती है। मौका मिलते ही फिर से वहाँ जाने के लिए सोचते हैं। जब तक नहीं जा सकते, तब तक आप बाबा जी के ऑडियो-वीडियो से काम चलाते हैं। पर अशांति नहीं मिटती।
आपको बार-बार यह समझाया जाता है कि शांति पाना एक बेहद जटिल विषय है। इसके लिए आपको उनकी जरुरत है।
लेकिन ज़रा बच्चों को देखिए। उनमें चंचलता है, परंतु अशांति नहीं। आप भी तो कभी इसी तरह शांत थे। शांति आपके स्वभाव में थी।
अब आप कहेंगे कि बचपन में तो जीवन की ये सब समस्याएँ नहीं होती। इस तरह आपने मान लिया है कि जीवन में अशांति होनी ही है। मुझे किसी से शांति पाने का उपाय चाहिए।
परंतु कुछ भी तो ऐसा नहीं जो आप नहीं जानते, या आपके लिए करना संभव नहीं। आपको यक़ीन नहीं आता तो शांति का नुस्खा नीचे संक्षिप्त कर रहा हूँ। आप खुद ही देख लीजिए -
- क्या हमें दिखावा करना चाहिए? बताइए। जानते हैं ना कि हमें दिखावा नहीं करना चाहिए।
- लेकिन दस हज़ार रुपए के फ़ोन के बजाए आप अस्सी हज़ार रुपए का फ़ोन लेते हैं। फिर हर मिनट यह चिंता कि इतना महँगा फ़ोन कहीं गुम ना हो जाए।
- अगले साल कंपनी फ़ोन का नया मॉडल निकालती है। फिर से आप नया फ़ोन खरीदना चाहते हैं, जबकि आपका फ़ोन सही हालत में है। इससे देख सकते हैं कि शांति-अशांति सस्ते या महंगे फ़ोन में नहीं, आपके अंदर है।
- चार लाख रुपए में भी कार आ सकती है, और वह भी बेहतर माईलेज वाली। लेकिन आप बारह लाख रुपए की कार खरीदते हैं।
- अगर आपके पास रुपया है, तब तो फिर भी ठीक है। लेकिन जरुरत के बजाए दिखावे के लिए लोन लेना बेवकूफ़ी नहीं तो और क्या है।
- किसी भी मस्ती में आप खुद को सरोबार होने ही नहीं देते। क्योंकि आपके हाथ सेल्फी लेने के लिए मचलते रहते हैं ताकि आप फेसबुक पर दिखावा कर सकें।
- दिखावा करने के आपको इतने सारे माध्यम उपलब्ध करा दिए गए हैं। आपके फ़ोन में कैमरा है। फ़ोन में ही इंटरनेट - व्हाट्सप्प स्टेटस, फेसबुक, इंस्टाग्राम।
- दिखावा जितना ज़्यादा होगा, उतना ही ज़्यादा सामान बिकेगा। महँगा फ़ोन, महँगी कार। जल्दी-जल्दी नए कपड़े खरीदना। मेरी इस शर्ट-जींस में फोटो तो सब फेसबुक पर देख चुके हैं। इसलिए अगले पार्टी-फंक्शन के लिए मुझे नए कपड़े लेने होंगे। गोवा जाने के लिए नए कपड़े लेने होंगे। पहले खरीदारी एक जरुरत थी। अब एक रुचि (हॉब्बी) बन गई है।
- पहले कुछ लोगों को दिखावटी कहा जाता था। अब पूरी दुनिया ऐसी हो गई है। अब दिखावे को स्वैग कहा जाने लगा है। दिखावा करना अफ़ीम के जैसा हो गया है।
- बुरा मत मानिएगा, पर सच्चाई यह है कि फेसबुक पर जिन लोगों को आप अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह, यात्रा, दफ़्तर, पार्टी इत्यादि हर बात की फोटो दिखा रहे हैं, उन्हें आपकी ज़िंदगी से या तस्वीरों से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता। यक़ीन नहीं आता तो आप फेसबुक छोड़कर देख लीजिए, कि कितने लोग आपसे फेसबुक पर फिर से आने के लिए आग्रह करते हैं।
- किसी ने आपको अशांति बेच दी है। और आपने अशांति को खरीद भी लिया है। शांत व्यक्ति को जीवन में वे सब भौतिक वस्तुएँ चाहिए ही नहीं। आपको विज्ञापनों में बताया गया कि आपके पास किसी चीज़ की कमी है। इस तरह आप चीज़ें खरीदते रहते हैं। फिर अशांति में अब आप शांति खरीदना चाहते हैं।
- किसी ख़ास वास्तु के लिए अलग ही शौक होना समझ में आता है। परंतु उसके अलावा बाकी जीवन में 'सादा जीवन, उच्च विचार' अपनाएँ। आजकल ज़्यादातर लोग 'ऊँचा जीवन, तुच्छ विचार' अपना रहे हैं।
- क्या हमें किसी से ईर्ष्या करनी चाहिए? क्या किसी से तुलना करनी चाहिए?
- आप जानते हैं कि ऐसा नहीं करना चाहिए। परंतु फिर भी ऐसा करते हैं, और अपने मन को व्याकुल कर लेते हैं।
- किसी दूसरे की ख़ुशी से भला आपको क्यों दुखी होना चाहिए? लेकिन आपने अशांति का एक फालतू कारण अपने जीवन में जोड़ लिया है।
- अपने से बेहतर लोगों से प्रेरणा लीजिए। उनसे कुछ सीखिए। ईर्ष्या करने से और किसी की चुगली करने से कुछ फायदा नहीं होगा।
- ईर्ष्या को तो जलन का नाम दिया गया है। कोई और आपसे जलता है, तो उसे जलने दें। मुश्किल है परंतु आप उनसे ईर्ष्या मत कीजिए। यही तो वे चाहते हैं कि आप उनसे जल जाएँ। आप अपने काम पर ध्यान केंद्रित करें।
- क्या हमें स्वार्थी होना चाहिए? दूसरों की मदद कर के अच्छा लगता है या बुरा?
- कहते हैं कि आजकल भलाई का ज़माना नहीं रहा। क्या वाकई? कोई आपके लिए कुछ भला करे तो क्या आपको अच्छा नहीं लगता? लगता है ना। इसलिए लोगों की मदद करें। दूसरों को आपकी मदद करने दें।
- स्वार्थ में आप एक क्षणिक ख़ुशी पा सकते हैं। परंतु ध्यान रखिए कि वह असली ख़ुशी नहीं है। उस ख़ुशी में कोई शांति नहीं है।
- ईर्ष्या और स्वार्थ उस जंक फ़ूड की तरह ही है, जो उस क्षण तो आपको अच्छे लगते हैं, परंतु बाद में आपको बीमार ही करते हैं। अच्छा खाना खाने की आदत डालेंगे, तब वह भी स्वादिष्ट लगने लगेगा। अच्छाई में अच्छा महसूस करेंगे आप। आपके मन-रुपी घोड़े को अच्छे खाने की जरुरत है, नहीं तो बीमार हो जाएगा।
- ईमानदार लकड़हारा, स्वार्थी दानव, सिंड्रेला जैसी वे बचपन की कहानियाँ बकवास नहीं थी। वे अमल में लाने के लिए हैं। जब बच्चों को वे कहानी सुना रहे हैं, तो अपने मन में यह कहना छोड़ दीजिए कि बेटा, अभी तू बच्चा है। अभी तुझे नहीं पता कि दुनिया कितनी कमीनी है। दुनिया के बदलने का इंतज़ार ना करते हुए अपने कमीनेपन को पहले हटाइए। ऐसा करते हुए इसे किसी और पर एहसान ना समझें। याद रखें कि यह आपकी शांति के लिए हैं।
- बहुत से जवाबों में पहले भी कह चुका हूँ कि भावुकता की वजह से आपका नुक्सान हो सकता है, परंतु भावुकता ख़त्म होना सबसे बड़ा नुक्सान है। नकली क्षणिक ख़ुशी तो आप पा लेंगे, परंतु भावुकता के बिना प्रेम, ख़ुशी, शांति जैसे कोमल भावों से वंचित रह जाएँगे।
- पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त, किसी भी रिश्ते में लड़ाई हो, तो आपको क्या करना चाहिए?
- अहंकारी बनकर अपनी गलती ना देखें, बहस करें, दूसरे को माफ़ी माँगने के लिए कहते रहें, बहुत सी शर्तें लगा दें? क्या हमें ऐसा ऐसा करना चाहिए?
- या अहं को मिटाकर गले लगा लेना चाहिए क्योंकि वे हैं तो आपके अपने ही। आज नहीं तो कल उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाएगा। या हो सकता है कि गलती आपकी ही हो और आपको एहसास हो जाए।
- व्यापार शुरू करते हुए बहुत सारा कर्ज़ा लेकर अचानक से करोड़पति बनने का सोचना चाहिए, या पैर जमाते हुए अपने वफादार ग्राहक बनाते हुए धीरे लेकिन स्थिरता से व्यापार को बड़ा करना चाहिए?
- जोख़िम उठाना तो व्यापार का हिस्सा है, लेकिन यह जायज़ा कर लें कि कितना जोख़िम उठा रहे हैं। एक बार गिर गए, तो दोबारा उठने के संसाधन और हिम्मत तो होगी ना। या सब कुछ ताक पर रखकर सड़क पर आ जाने का जोखिम ले लिया है?
- काम कर रहे हैं तो निष्काम भाव से करें।
- जैसा कि श्री कृष्ण ने कहा है कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो।
- इस बात पर ध्यान दें कि काम उत्तमता से हो, जिसे देखकर लोग तारीफ करें या नहीं, लेकिन आपको लगे कि मैंने कुछ सार्थक किया। प्रमोशन मिले, तारीफ मिले, इनाम मिले, जो मिल जाए, एक बोनस है।
- कुछ भी करते हुए इधर-उधर की बातें सोचनी चाहिए या उसी काम पर पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहिए?
- यही है ध्यान लगाना या मैडिटेशन। प्रत्येक क्षण में डूब जाना।
- सुबह आँखें बंद कर के पंद्रह मिनट वाला मैडिटेशन तो कीजिए ही, परंतु यह दिनभर का मैडिटेशन ज़्यादा आवश्यक है।
- खाना खा रहे हैं, तो चबा-चबा कर धीरे-धीरे खाना खाएँ। फिल्म देख रहे हैं तो तल्लीन होकर सिर्फ फिल्म देखिए। पढ़ाई कर रहे हैं तो रटने के बजाए हरेक सूत्र को समझकर पढ़ें। ज्ञान के लिए पढ़ेंगे तो मज़ा भी आएगा, और इम्तिहान में अच्छे अंक भी।
- फ़ोन नाम का एटम बम जो आप जेब में लिए घूम रहे हैं, उससे बचिए। किसी को आपसे जरूरी काम होगा तो फ़ोन कर लेगा। इसलिए बार बार फ़ोन में अधिसूचनाएँ देखना बंद कीजिए। यह आपको ध्यान केंद्रित करने से रोकता है, और आपको सर्वथा विचलित रखता है। बस-मैट्रो-रेलगाड़ी में खाली होते हुए कुछ करना है तो कहानियों की किताब पढ़िए।
- जो काम आपको अच्छा लगता है, क्या रूपये और प्रसिद्धि के लिए ही उसे करना चाहिए? और वह काम करियर ना बन पाए, तो क्या उसे छोड़ देना चाहिए?
- या वह काम तब भी इसलिए करना चाहिए क्योंकि वह काम करने में आपको मज़ा आता है?
- जो हमारे पास है, क्या हमें उसमें संतुष्ट रहना चाहिए, या हर वक़्त शिकायती लहज़े में अपनी ज़िंदगी को लेकर रोते रहना चाहिए?
- क्या दूसरों की तारीफ करनी चाहिए या खुद के साथ औरों में भी कमी निकालनी चाहिए?
- परिवार के साथ कभी घूमने निकलें, तो क्या हमेशा मॉल में जंक फ़ूड खाने के लिए जाना चाहिए, या कभी किसी गाँव में, किसी झील पर या किसी सुन्दर पार्क में पिकनिक करनी चाहिए?
बच्चे हर काम को फायदे-नुक्सान की कसौटी पर नहीं आँकते। उनका जो मन होता है, वे मज़े के लिए करते हैं। उनकी भले ही आपस में खेलते हुए लड़ाई हो जाए, परंतु उनके दिल में नफ़रत नहीं होती। बच्चों में अहंकार नहीं होता। आज लड़ लिए, और कल फिर से बातें शुरू। बच्चे हर बात में दिखावा नहीं करते। बच्चे हर काम में ध्यान केंद्रित करते हैं। इसलिए बच्चे शांत और खुश होते हैं।
धीरे-धीरे माँ-बाप बच्चों से यह सब सीखने के बजाए बच्चों को अपने जैसा बना देते हैं। क्लास में प्रथम आओ। औरों के इम्तिहान में अंकों से तुलना करो। जो परीक्षा में आना है, वही पढ़ो। अपने से गरीब बच्चों से ज़्यादा बात मत करो। यह वाकई एक दुर्भाग्य है।
जब घोड़ा प्रशिक्षित होता है, तो उसके तेज़ भागने पर भी घुड़सवार को डर नहीं लगता। ठंडी-ठंडी हवा का चेहरे पर स्पर्श होता है, और यह आनंदमयी होता है। बीच-बीच में घोड़े का धीरे चलना और विश्राम करना भी आवश्यक है। खेल-कूद और मनोरंजन के लिए भी समय निकालें। वीडियो गेम खेलने जैसे ऊबकाऊ काम बंद करें। कुछ सृजनात्मक शौक उत्पन्न करें।
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