जीवन का उपदेश दिया गया है
1. Ques → जीवन का उद्देश्य क्या है ?
Ans→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!
2. Ques → जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ?
Ans→ जिसने स्वयं के दिव्यस्वरूप को, भक्तिभाव के साथ अपनी हृदय में बसी ईश्वरस्वरूप आत्मा पर ध्यान के नियमित अभ्यास व दृढ़ आत्मसंयम के पालन द्वारा जान लिया — वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!
3. Ques→ संसार में दुःख क्यों है ?
Ans→ लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मूल कारण हैं..!!
4. Ques→ ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ?
Ans→ ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!!
5. Ques→ कौन सी चीज़ें गँवाने के बाद ही मनुष्य का वास्तविक विकास आरम्भ होता है ?
Ans→ स्वार्थ, मोह व लोभ..!!
6. Ques → किस चीज़ के खो जाने पर सुख मिलता है ?
Ans → भय व क्रोध..!!
7. Ques→ धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ?
Ans → पवित्रता, प्रेम, भक्ति, त्याग, विनम्रता व सहनशीलता..!!
8. Ques→ क्या चीज़ दुसरो को कभी नहीं देनी चाहिए ?
Ans→ अपमान, तकलीफ, व धोखा..!!
9. Ques→ ईश्वर क्या है ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ? उससे प्रेम कैसे करें ?
Ans→ कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है — उस महान कारण को ही आध्यात्म में 'ईश्वर' या पूर्ण परमात्मा कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष; वह सर्वत्र प्रसारित महानतम विभूति है।
बिना ओर विलम्ब के प्रेम के सर्वश्रेष्ठ हक़दार ईश्वर से प्रेम करना सीखो; वही हर वस्तु में मौजूद असलियत है। उसकी मौजूदगी के इस अद्भुत दिव्य अहसास को अपने ह्रदय में हर पल महसूस करना सीखो, उसकी हृदय से आने वाली पुकार सुनो ओर उसका सदैव पालन कर उस दिव्य ज्ञान के सागर से जुड़ना सीखो; उससे जुड़ कर तुम हर ह्रदय में मौजूद ईश्वर से जुड़ना सीख जाओगे।
10. Ques→ कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
Ans → गीता में श्री कृष्ण ने कहा है, "अपने हृदय मे मौजूद ईश्वर पर ध्यान द्वारा ईश्वर को आत्मसात करो, केवल इस तरीक़े से तुम शीघ्र, अति शीघ्र ईश्वर को प्राप्त कर शाश्वत रूप से सुखी होने का सुख प्राप्त कर सकते हो!!"
11. Ques→ भाग्य क्या है ? कर्मों का निर्माण कैसे होता है?
Ans→ अपने हृदय मे ईश्वर के प्रति प्रेम व भक्ति के भाव को उत्पन्न किये बिना हम जो कुछ भी सोचते है या कार्य करते हैं तो वह कर्म या संस्कार मे तब्दील हो जाता है।हमें हर कार्य ईश्वर की प्रेम भरी याद मे डूब कर, स्वयं को भूल कर, सब कुछ ईश्वर को समर्पित करते हुये ही निभाना चाहिये।
हमारे हर कार्य का एक अपरिमेय परिणाम होता है। वह परिणाम हमारे पिछले (असंख्य जन्मों में किये गये कार्यों व सोच के अनुसार उत्पन्न) करमों के भोग के अनुसार होता है। वह अच्छा भी हो सकता है ओर बुरा भी। यह परिणाम ही भाग्य है।
हमारे जीवन में चाहे जो कुछ भी घटे, जो कुछ भी मिले, हर चीज़ को सहर्ष स्वीकार करते हुये, निस्वार्थ भाव से ईश्वर की प्रेम भरी याद में, संयम के साथ, समर्पित भाव से हर कार्य करने से भविष्य के कर्मों के निर्माण की प्रकिया को समाप्त किया जा सकता है; परन्तु अपनी इच्छाओं व स्वार्थ की पूर्ति के लिये किया जाने वाला हर प्रयत्न भविष्य के कर्मो का निर्माण करता हैं।
ईश्वर कृपास्वरूप, हर नया जन्म, ईश्वर हमें अपने पुराने कर्मों के हिसाबों को सहनशीलता व संयम के साथ भोग कर चुकता करने हेतु प्रदान करता है ताकी हमारी आत्मा स्वयं पर पढ़े अनगिनत आवरणों को भोगो के ज़रिये हर जन्म मे सहनशीलता से कम कर सके और इस तरह कई असंख्य जन्म ले कर एक दिन सम्पूर्ण आवरणों से मुक्त हो कर पुनः ईश्वर में एकाकार स्थापित करके शाश्वत आनन्द प्राप्त कर सके।
परन्तु हम अपने मूल्यवान जीवन को (अज्ञानतावश) इस मायावी दुनिया के ज़बरदस्त मोहित करने वाले आकर्षणों मे फँस कर, अपनी इच्छाओं की पूर्ति में उलझ कर व्यर्थ करते हुये और-और अनगिनत कर्मों (अपनी आत्मा पर और आवरणों) का निर्माण करते ही जाते हैं तथा सदैव के लिये दुखों से भरे इस जन्म-मरण के चक्रव्यूह में फँसे रहते हैं ..!!
12. Qus→ इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?
Ans→ इससे बड़ा आश्चर्य ओर क्या हो सकता है कि (आत्मा का शरीर में प्रवेश के बाद) हर मानव, कर्म-भोगो के भ्रमजाल मे फँस कर जीवन का सबसे बड़ा सत्य सदैव भूल जाता है कि यह बहुमूल्य मानव जीवन केवल परमात्मा की भक्ति व आत्मिक विकास के लिये मिला है; यह जीवन सीमित है और एक सीमा के बाद समाप्त हो जायेगा।
इस जीवन की हर वस्तु नशवर है, फिर भी मनुष्य भ्रमवश अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा में दूसरों के अधिकारों का हनन कर अपने लिये धन, ऐश्वर्य के साधन, प्रतिष्ठा व अर्थसिद्धि जैसी नशवर चीज़ें से लगाव करके अपने भविष्य के कर्मो के कोटे मे अनगिनत पाप-भोग एकत्र करता जाता है ओर इस तरह अपने अगले जन्मों के दुखों का स्वयं ही निर्माण करता जाता है….!!
13. Ques→ क्या चीज़े है, जिससे हमें सदैव बचना चाहिये; जो मानव के सबसे अधिक पतन का कारण बनते हैं?
Ans→ दूसरों से इज़्ज़त पाने का आनन्द तथा किसी दूसरे का शोषण करके अपना सुख बड़ाने का आनन्द..!!
14. Ques→ ऐसी चीज़ (शक्ति) जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है?
Ans→ पवित्र निस्वार्थ प्रेम ..!!
15. Ques→ दुनियां में अपराजित चीज़ कौन सी है?
Ans→ सत्य..!!
उससे कोई कितना ही दूर भाग ले पर वह सदैव वहीं मौजूद रहता है। ओर सब को निश्चित ही एक दिन उसका सामना करना पड़ता है। इस प्रकिया मे देर होना तो सम्भव है परन्तु उससे दूर भागने के दुष्कर परिणाम से बच पाना असम्भव है।
16. Ques→ दुनियां में सबसे ज़्यादा पंसद की जाने वाली चीज़ क्या है?
Ans→ झूठ व आडंबर ..!!
17. Ques→ उत्कृष्टता की ओर बढ़ने के लिये सबसे उतम व सुकून का कार्य कौन सा है?
Ans→ हर समय इस याद व दिव्य भाव मे रहना कि:
"कण कण में, हर शै के ह्रदय में ईश्वर मौजूद है, ईश्वर प्रेम है; हम सब प्रेम के इस अटूट धागे से बनी माला के पवित्र मोती हैं।”
इस दिव्य प्रेम के उत्कृष्ट अहसास को हर कार्य करते हुये, प्रत्येक क्षण, अपने स्वभाव में उतारने का प्रयास करना तथा उसे हर क्षण अपने व्यवहार में प्रकट करते हुये स्वयं प्रेम बन जाना।
यह उदात्त व गौरवशाली कला हम केवल हार्टफुलनेस मेडिटेशन के निष्ठा के साथ किये गये दैनिक अभ्यास से ही सीख सकते हैं।
18. Ques→ दुनियां का स्वर्णिम भ्रम क्या है?
Ans→ जिंदगी में जो कुछ भी आज हमारी परिस्थिति है वह हमेशा यूँ ही बनी रहेगी। (यह शाश्वत सत्य भूल जाना कि परिवर्तन संसार का नियम है।)
19. Ques→ ऐसी चीज़ जो स्वयं की समझ मे नहीं आती ?
Ans→ अपनी मूर्खता..!!
स्वार्थ, लोभ व मोह के मायाजाल में मानव अपना विवेक व दिव्य बुद्धी (सही ग़लत व नशवर अनश्वर की पहचान) भी खो देता है। वह अपनी सफलता, यश, धन, व सुखों की प्राप्ति मे इस क़दर उलझ जाता है कि वह अपने फ़ायदे के लिये, कितना झूठ, कितना छल कपट व दूसरों का इस्तेमाल करने लगा हैं; यह विरूपण (downfall) वह कभी समझ ही नहीं पाता।
अपने स्वार्थ व ख़ुशी के लिये की गयी हर चालाकी व छल से हम जो वर्तमान में दूसरों को दुख या कष्ट पहुँचाते या धोखा देते हैं (वेदों, उपानिशदों व पूज्य स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार) उसके चार-गुना अनुपात के दुख, भविष्य में भोगने के लिये हम (स्वयं के कर्म-भोग के खाते में दुखों की वृद्धी करते हुये) ख़ुद अपने दुखों का सृजन करते हैं।
आज जो सारे संसार मे चारों ओर इतने कष्ट व पीड़ायें है व ईश्वर ने नहीं; हर मनुष्य ने स्वयं अपने करमो से उत्पन्न की हैं।
As Swami Vivekananda said, "Every bit of pleasure will bring its quota of pain, if not with compound interest."
20. Ques→ दुनियां में कभी भी नष्ट न होने वाली (अनश्वर) चीज़ क्या है?
Ans→ आत्मा और आत्मज्ञान..!!
21. Ques→ मनुष्य जीवन का उच्चतम लक्ष्य क्या है?
Ans→ ईश्वर मे पूर्णता विलय हासिल करना !!
ताकि हमारी आत्मा अपनी अनन्त यात्रा में, पृथ्वीलोक को पार करके — अपने उर्ध्वपटल पथ पर आगे बड़ सके।
22. Ques→ उच्च कोटि के उपलब्ध दिव्य गुरू की अनमोल कृपा व सहायता को नज़रअंदाज करने पर मानव को ज्ञान कौन प्रदान करता है?
Ans→ समय..!!
पूर्ण दिव्य गुरू की कृपा व सानिध्य से, इस संसार का हर मानव करोड़ों वर्षों में समाप्त होने वाली, जन्म-मरण के असंख्य दुखों के दौरों से गुज़रने वाली, अपनी आत्मा की शेष यात्रा को, (दिव्य गुरू के द्वारा बताये गये दिव्य निर्देशों व तरीक़ों का श्रद्धा के साथ पालन करते हुये) इसी एक ही जन्म मे समाप्त कर, उच्च आयामी दिव्य लोक (Brighter World) मे प्रवेश करने का अद्वितीय दिव्य सौभाग्य प्राप्त कर सकता है …!!!!
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